हाथों की लक़ीरों ने क्या खेल दिखाया,
जिनसे न मोहब्बत थी हमें उनसे मिलाया।
हाथों में नहीं दम पांवों भी थके हैं,
क्यूँ हमनवा मेरा मेरे सामने आया।
उन शोख हसीनों से ज़रा जाकर कोई पूछे,
तन्हाई में अपनी न कभी उनको बुलाया।
उसने मुझे देखा था यूँ शोख निगाहों से,
जैसे किसी साकी ने मुझे जाम पिलया।
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very beautiful lines... especially "Matlaa" is too good.
thank you so much for the appreciation...