एक मसला-ए-मोहब्बत, जो कभी सुलझा नही,
हमने कभी कहा नही, उसने कभी समझा नही,
ये इश्क में सजा रही, अब जिंदगी में मज़ा नही,
जख्म कभी दिखा नही, इस दर्द की दवा नही,
सजाये बहुत साज़ हमने, दिल के आशियाने में,
कभी गीत कोई सुना नही, साज़ कोई बजा नही,
जो मिला वो ज़मा नही, जो ज़मा वो मिला नही,
यही उसकी रज़ा रही, ये “मन” कभी समझा नही,
~~~~~~~~~
मनोज सिंह”मन”