रात की कालिख जब उफ़ान पर होती है
तेरी बाहों के चिरागों से तब सहर होती है
रोती है बहुत तब कोई नादान चकोरी
तेरी आँखों में सनम मेरी चाहत की डोर होती है
सुनो सजना मुझे ये रात बहुत भाति है
क्योकि इसमें ही मेरे सजदों की उम्र पूरी होती है
तुम पास नही तो क्या अहसास बहुत हैं
ख्वाबो में ही सही मेरी तो हर बात खरी होती है
तुम मुझे जैसे कोई फ़रिश्ते से मिल जाते हो
मेरी दुनियां तेरी जन्नत में कही खो जाती है
तेरे होठों से उठी वो एक मासूम हँसी
मेरे हर जख्म का मरहम सा हो जाती है
छूती हूँ जब जब तेरे ख्यालों को
उस एक लम्हे में मेरी उम्र गुज़र जाती है
लोग कहते है की ये रात बड़ी काली है
मैं कहती हूँ सनम मेरी रात में तेरी चांदनी बिखर जाती है
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एय मेरे अहसास की रग रग में उतरने वाले
मुझे एक बार तुमसे कहना है कि मैं तुमसे.....
मगर जाने दो