रह-रह कर अब याद आ रहा,
वो मेरा एकाकी जीवन।
इक कमरे का रहवासी था, Read more
रह-रह कर अब याद आ रहा,
वो मेरा एकाकी जीवन।
इक कमरे का रहवासी था, Read more
तुम रहना अपने द्वार,
करना मेरा इंतजार,
हम दोनो को जाना है, Read more
आ चल लहरों संग नाचेंगे।
इक दूजे संग कैसा तालमेल,
अपनों से ऐसा मधुर मेल। Read more
क्या कहूँ दिल-ए-नादान से कैसे निजात करता हूँ,
अब तो आलम ये है खुद ही से बात करता हूँ।
तेरी बेरूखी का नतीज़ा ये कैसा हुआ, Read more
प्रार्थनायें क्या होतीं हैं
मन का विश्वास होतीं हैं
बंधती हुयी आस होतीं हैं Read more
बाज लगभग ७० वर्ष जीता है, परन्तु अपने जीवन के ४० वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है ।
उस अवस्था में उसके शरीर के 3 प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं. पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है व शिकार पर पकड़ बनाने में
असक्षम होने लगते हैं । चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है, और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है । पंख भारी हो जाते हैं. Read more
“मौन” है जिनकी वाणी, “मौन” ही जिनका ध्यान,
“मौन” ही जिनकी साधना, वो हैं मेहेर बाबा “मेहेरवान”|
“मौन” रहकर ही दिया, उसने “मौन” का ज्ञान, Read more
मां धरती है पिता आसमां है
मां पूजा है तो पिता महान है
जीवन चमकता दोनों के साथ
मां ममता है पिता सम्मान है…
आभा….
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे …
हम तो अल्हड-अलबेले थे ,खुद जैसे निपट अकेले थे , Read more
मधुशाला भाग – 6 (हरिवंश राय बच्चन)
साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
क्यों पीने की अभिलाषा से, करते सबको मतवाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो, Read more
मधुशाला भाग – 5 (हरिवंश राय बच्चन)
ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला,
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले Read more
ज़बरन ही हामी भराई गई थी
शादी के मंडप बिठाई गई थी
अजीब सी हालत थी दिल की मगर Read more
कोलाहल मन के भीतर, अंतर्मन व्याकुल,
भयाक्रांत सब दिशायें, हलचल प्रतिपल|
स्वर्णिम दिवस हरित रात्रि,कहाँ ग़ुम हुई?, Read more