दर्द में हम गाते है, लोगो को अपने नगमे हम सुनाते है
हम लिखते है तुम्हारी याद में और लोग हमे शायर कह जाते है।
दर्द में हम गाते है, लोगो को अपने नगमे हम सुनाते है
हम लिखते है तुम्हारी याद में और लोग हमे शायर कह जाते है।
मुझे तूझसे कोई सिकवा नही
तेरे दरद को श्यारी बना दिया
मैंने भी अपने हारे मुकदर को
तेरी याद में जीत का सिकंदर बना दिया
-Nisha nik.
कोई दर्द, कोई चुभन जब हद से गुजर जाए,तो याद करना,
जिन्दगी में कभी जरूरत पड़ जाए,तो याद करना।
बिछड़ते वक्त के ये आखिरी, अल्फाज थे उनके, Read more
आप हम से न बोले तो बेखुदी हमारी बढती है,
हम आप से न बोले तो जा हमारी निकलती है,
हम किस दरद से गुजर रहे है ये खुद से पूछिये
क्योंकी जो दरद हम सह रहे है ,
आप भी उसी दरद से गुजर रहे है।
दर्द लाख सही बेदर्द ज़माने में
मगर जाता भी क्या है मुस्कुराने में
सुरेश सांगवान ‘सरु
कितने बदल गये हालात किसी के जाते ही
बदली मौसम की भी जात किसी के जाते ही
गम किस बला का नाम है दर्द का पता ना था
निकली अश्क़ों की बारात किसी के जाते ही Read more
मेरी खिड़की पर जा बैठा
अजनबी सा ये सूनापन
घेर लेता है अक्सर ही Read more
बे-क़रारी शोर मचा सकती है
आसमाँ सर पे उठा सकती है
रू-ब-रू हो मौत से इक बार तू Read more
ज़िन्दगी तेरे दर्द से हारता है कोई
प्यार दुनियां का ज़रूर मुग़ालता है कोई
—सुरेश सांगवान
ठिकाना ढूँढती बहती हवा सी लगती हूँ
ज़िंदगी से नहीं खुद से खफ़ा सी लगती हूँ
मुझ में बस गई है आकर किस ज़ोर से देखो Read more
माँ रोते में मुस्कुराना तुमसे सीखा है
कारे दुनियाँ का ताना-बाना तुमसे सीखा है
गर्दिश-ए-दौरा तो आनी जानी शै Read more
चांदनी क्यों इतराती है खुद पे इतना,
कंही छुप जाये मेहताब,तो क्या होगा,
कुछ रुका सा है,नाजुक सी पलकों में, Read more
उन नादानियों के दौर से यूँ हम भी गुज़रे थे,
अब क्या बताये आपको कि कैसे बिखरे थे,
शिकवे शिकायत रूठना रोज़ की बात रही, Read more
ये तो ना सोचा था हमने, कोई ख़ुदा हो जायेगा,
दिल से दिल लगा के हमसे, वो जुदा हो जायेगा,
दर्द दिल में है अगर, फ़िक्र फिर किस बात की, Read more
उन नादानियों के दौर से यूँ हम भी गुज़रे थे,
अब क्या बताये आपको कि कैसे बिखरे थे,
शिकवे शिकायत रूठना रोज़ की बात रही, Read more
एक मसला-ए-मोहब्बत, जो कभी सुलझा नही,
हमने कभी कहा नही, उसने कभी समझा नही,
ये इश्क में सजा रही, अब जिंदगी में मज़ा नही, Read more
बाज लगभग ७० वर्ष जीता है, परन्तु अपने जीवन के ४० वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है ।
उस अवस्था में उसके शरीर के 3 प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं. पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है व शिकार पर पकड़ बनाने में
असक्षम होने लगते हैं । चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है, और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है । पंख भारी हो जाते हैं. Read more
निकल पड़ता है घर से रोज़ दर्द-ए-दिल भुलाने को,
राह पकड़ता है बुतख़ाने की या जाता है मयख़ाने को।
मेरे माज़ी के मुझपे हैं कुछ एहसान बेशुमार, Read more
ना लफ़्ज़ों का लहू निकलता है ना किताबें बोल पाती हैं,
मेरे दर्द के दो ही गवाह थे और दोनों ही बेजुबां निकले…
कोई मंज़िल भी नहीं कहीं मुझे जाना भी नहीं
तेरी ख़ातिर ऐ ज़िंदगी मैं दीवाना भी नहीं
पुराने क़िस्सों की अब दुहाई ना दिया कर मुझे Read more