Saru on September 24, 2016 0 Comment | 70,778 इक ज़रा सी ज़िंदगी में इम्त्तिहां कितने हुये बोलने वाले न जाने बेज़ुबाँ कितने हुये ध्रुव तारा ज़िंदगी का कौन होता है कहीं Read more →
~aakaasshhh~ on February 28, 2015 1 Comment | 28,455 ना लफ़्ज़ों का लहू निकलता है ना किताबें बोल पाती हैं, मेरे दर्द के दो ही गवाह थे और दोनों ही बेजुबां निकले…