आंसुओ का कैसा ये मंजर है
ऐसा लगता आँखो में ही समन्दर है
आब -ए -चश्म आँखो से सदा बहता है
ऐसा लगता समन्दर का आब -ए -तल्ख़ है।
-Nisha nik
आंसुओ का कैसा ये मंजर है
ऐसा लगता आँखो में ही समन्दर है
आब -ए -चश्म आँखो से सदा बहता है
ऐसा लगता समन्दर का आब -ए -तल्ख़ है।
-Nisha nik
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं
मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में Read more
उस जैसा मोती पूरे समंद्र में नही है,
वो चीज़ माँग रहा हूँ जो मुकद्दर में नही है,
किस्मत का लिखा तो मिल जाएगा मेरे ख़ुदा,
वो चीज़ अदा कर जो किस्मत में नही है……
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
खुदा इस शहर को महफूज़ रखे Read more
तलवार तीर तो कभी खंज़र भी आयेंगे
सेहरा कहीं कहीं पे समंदर भी आयेंगे
—-सुरेश सांगवान’सरु’
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना Read more
जहां को दिलवालों की कद्र करते किसने देखा है
किसी पत्थर को आख़िर आह भरते किसने देखा है
सदा से आते जाते हैं मौसम ये रुत बहारों की Read more
लगा के सीने से नदियों ने दी ख़बर
समंदर है लेकिन वो खारा बहुत है
——–सुरेश सांगवान’सरु’
जहाँ इतने हैं ए दिल वहाँ एक फसाना और सही
जीने का तेरे वादे पे एक बहाना और सही
और है पानी ए दिल समंदर में आँखों के अभी Read more
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैने,
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैने
काले घर में सूरज चलके, तुमने शायद सोचा था Read more