दीवानों से उस बेगाने का ,रिश्ता लगता है,
मुझे चेहरे से वो पागल, फरिश्ता लगता है,
वो भी पहले हँसता था,कहते है सब लोग,
अब जीना भूल गया हो जैसे,ऐसा लगता है,
उस टूटे दिल का भी है,अब बंजारों सा हाल,
वो शाख से टूटा आवारा,एक पत्ता लगता है,
सुना-सुना सा उसका, हर किस्सा लगता है,
एक पुरानी सी कहानी का,हिस्सा लगता है,
अब ख़ामोशी है राहों में,बिखरे है सब फूल,
किसी उजड़ी हुई बस्ती का,रस्ता लगता है,
जाने कोई कब समझेगा,जज्बातों का मौल,
कुछ लोगों को हर खिलौना,सस्ता लगता है,
~~~~~~~~~~
मनोज सिंह”मन
राहत का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी… Read More
ख़ामोश लब हैं झुकी हैं पलकें, दिलों में उल्फ़त नई-नई है,अभी तक़ल्लुफ़ है गुफ़्तगू में,… Read More
वक़्त शायरी | समय शायरी | Waqt Shayari in Hindi - Part 2 (26 से… Read More
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसान उतारता है कोई आईना देखकर तसल्ली हुई… Read More
तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर… Read More
वक़्त शायरी | समय शायरी | Waqt Shayari in Hindi - Part 1 (1 से… Read More
Leave a Comment