दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देखकर तसल्ली हुई
हमको इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
(तुम्हारे ग़म की डली उठाकर जुबां पे रख ली है देखो मैंने
ये कतरा कतरा पिघल रही है मैं कतरा कतरा ही जी रहा हूँ )
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हमको पुकारता है कोई.
-गुलज़ार
शजर : पेड़, tree
गीतकार : गुलज़ार,
गायक : जगजीत सिंग,
संगीतकार : जगजित सिंग,
गीत संग्रह/चित्रपट : मरासिम (१९९९)
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