मीठी नशीली बातों का काफ़िला भी देखा है
जाने ग़ज़ल हमने वो काफ़िया भी देखा है
पूछे लोग मुझसे क्या मैक़दा भी देखा है
तेरी नज़र में हमने वो जहाँ भी देखा है
ये दुनियाँ कई तरहा से देखती दिखती है
मतलब परस्तो का ए दिल राबिता भी देखा है
सूरज ना जला घर में दूरसे ही अच्छा है
जहान रोशनी की ख़ातिर जला भी देखा है
हँसी तो हँसा बहुत रोइ तो रोया भी
सच को तो नहीं पाया आइना भी देखा है
मैं ये तो नहीं कहती दूसरा भी देखा है
वालिद के सिवा रब का आसरा भी देखा है
नाखुदा ए ज़िंदगी आपसा भी देखा है
मंज़िल की तरफ जाता रास्ता भी देखा है
—–सुरेश सांगवान ‘सरु’
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मोहब्बत भी अजीब चीज बनायीं खुदा तूने, तेरे ही मंदिर में, तेरी ही मस्जिद में, तेरे ही बंदे, तेरे ही सामने रोते हैं, तुझे नहीं, किसी और को पाने के लिए
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
इस पागल ने दुनियाँ से दिललगी करली
पलकों को हमने,
झुकने न दिया...
तेरे खातिर हमने,
जरा-सा मुस्कुरा दिया...
.
मेरी वफा को तुमने,
इक पल में भुला दिया...
जो किया दगा तुमने,
तुझे खुद से मिटा दिया...
.
शीशा तोड़कर आशिकी का हमने,
खुद को फिर अकेला कर दिया...
मेरे इश्क को तुमने,
इक मजाक बना दिया...
#rahul_rhs